आप जिस लक्ष्य को प्राप्त
करने की इच्छा रखते है, उसके अनुसार मेहनत करने के लिए अपने आपको तैयार करना आवश्यक
होगा. जिन लोगों ने बड़े लक्ष्य हासिल किये है, वे यों ही किस्मत के भरोसे ऐसा
नहीं कर सके हैं. उन्होंने अपने श्रम, कर्तव्यपालन एवं एकाग्रता आदि के द्वारा
उसकी पूरी कीमत चुकायी है. जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए कठिन परिश्रम के रूप में
कीमत चुकाना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है.
आपने देखा होगा कि बाजार
में एक ही वस्तु अलग-अलग दामों में उपलब्ध होती है, क्योंकि कीमत का सामान्य
सिद्धांत है – जैसा माल वैसा दाम. लोक में प्रचलित कहावत भी यही कहती है कि जितना
गुड़ डालोगे, उतना मीठा होगा. गुड़ की जगह हम भले ही शक्कर रख दें, परन्तु
गुणवत्ता के ग्राहक को उक्त नियम का पालन करना ही पड़ता है.
यही नियम लक्ष्य प्राप्ति
अथवा सफलता की कोटि के संदर्भ में लागू होता है. आप जितने बड़े लक्ष्य को प्राप्त
करने की इच्छा रखते है, आपको उसी के अनुरूप साधना व परिश्रम करने के लिए अपनी मानसिकता
को बनाना होगा.
आप जिस लक्ष्य को प्राप्त
करना चाहते है, आपको उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों की जीवन-पद्धति का अध्ययन करना
होगा, जिन्होंने सम्बन्धित उपलब्धि तक पहुँचने में सफलता प्राप्ति कर ली है. एक छोटी-सी
पहाड़ी की चोटी पर आप एक छोटी-सी लाठी के सहारे पहुँच सकते है, परन्तु एवरेस्ट
नामक पर्वत शिखर तक पहुँचने के लिए हमको हिलेरी, हण्ट और शेरप्पा तेनसिंह की
भॉंति तैयारी भी करनी होगी और संघर्ष भी करना होगा- बर्फ काटने की कुल्हाड़ी और
फावड़े से लेकर भोजन, पानी, ऑक्सीजन का सिलेंडर, डेरा-तम्बू तक सभी कुछ ले जाना होगा. इसके अतिरिक्त
ऑंधी-तूफान, वर्षा-बर्फ आदि का सामना करने की शक्ति का निर्धारण भी करना होगा.
हमको उन लोगों की भॉंति साहस भी बटोरना होगा, जो अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते समय
बार-बार उठे हैं. याद रखिए हमारी उपलब्धि का मापदण्ड यह होता है कि हम कितनी विघ्न–बाधाओं
पर विजय प्राप्ति करके यहॉं तक पहुँचे
हैं, जो लोग विघ्न-बाधाओं की परवाह करते हैं अथवा उनकी उपस्थिति से आंशकित अथवा
आतंकित होते हैं. उनके लिए उचित है कि वे छोटी-सी पहाड़ी की चोटी को अपना लक्ष्य
बनाएं और सुख-संतोष का अनुभव करने की मानसिकता बना लें. एक प्रसिद्ध लेखक ने एक स्थान पर बहुत पते की
बात कही है कि जिस मनुष्य को अपने चारों ओर विघ्न–बाधाएं ही दिखाईं पड़ती है,
उसका आत्मबल क्षीण हो जाता है, वह कोई महान, कार्य नहीं कर सकता है, जो महान्
लक्ष्य की प्राप्ति करके जीवन में कुछ बनना चाहते है, वे वस्तुत: नेपोलियन महान्
की भॉंति आग-पानी की परवाह नहीं करते है. एक बार नेपोलियन की सेना आल्पस पर्वत को
सामने देखकर ठिठक गई थी. नेपोलियन ने आवाज लगाई – यह आल्पस पर्वत नहीं वह तो अभी दूर है फिर क्या
सेना ने उस पर्वत को कोई दूसरा छोटा पर्वत समझ पार कर लिया, जबकि वह आल्पस पर्वत
ही था. इसी तरह एक और किस्सा है जो कि अमेरिका के एक स्थान का है जहॉं एक छोटे गरीब
परिवार में बालक रहता था। मेहनत-मजदूरी करके उसे जो भी मिलता, वह उससे अपना खर्च
चलाया करता था। उसको एक दिन पता चला कि उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक व्यक्ति रहता
है, जिसके पास जॉर्ज वाशिंगटन की जीवन चरित्र है। उसने उस व्यक्ति से पढ़ने के
लिए वह पुस्तक मॉंग ली, पर जब लौटाने का दिन आया तो उस दिन भंयकर बारिश होने लगी।
उस बरसात में वह पुस्तक भीग गई। वह बालक उस व्यक्ति से बोला – “मैं आपको यह पुस्तक
खरीदकर नहीं दे सकता, पर इसक बदले का परिश्रम करके मैं इसका मुल्य अवश्य चुका
दूँगा।” वह व्यक्ति उसकी श्रमशीलता व ईमानदारी से अत्यंत प्रभावित हुआ। उसने वह
पुस्तक उसे भेंटस्वरूप दे दी। यही श्रमशील व र्इमानदार बालक आगे चलकर संयुक्त
राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
तो देखा दोस्तों अपने
लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. विघ्न–बाधाएं वस्तुत:
भूतों और डायनों की भॉंति होती हैं, जो हमारी शंकाओं की उपज होती हैं. मनसा डायन
और शंका भूत, शंका और भय का शमन होते ही वे लुप्त हो जाती हैं. यही स्थिति विघ्न-बाधाओं,
संकटों आदि की होती है. उनसे हम जितना अधिक डरते हैं, वे हमको उतना ही अधिक डरातें
हैं. अन्यथा जीवन-निर्माण का अटल नियम तो यह है कि एक बाधा को पार करने का पुरस्कार
होता है अन्य बाधा को पार करने की योग्यता की प्राप्ति.
यदि हमारे मन में कभी
किसी प्रकार की आशंका अथवा भय की उत्पत्ति होती है, तो हमें न तो निराश होने की
आवश्यकता है और न यह सोचने की जरूरत है कि हमारा मन दुर्बल है, हम आगे नहीं बढ़
सकेंगे. दुर्बलताएं मानव जीवन का अनिवार्य अंग हैं, यदि हमारे जीवन में दुर्बलताएं
न होंगी, तो हमें उन पर विजय प्राप्त करके सबल बनने की प्रेरणा क्योंकर प्राप्त होगीं?
हॉं, हमें इतना अवश्य समझ लेना चाहिए कि शंका, आशंका, आदि का जन्म हमारे व्यक्तित्व
के दुर्बल पक्ष की ओर इशारा करता है और यह भी निर्देश देता है कि हम उस पर विजय प्राप्त
करने का प्रयास करें.
हमारी प्रगति और
दुर्बलताओं का चोली-दामन का साथ हैं. हम दुर्बलताओं को दूर करते जाएं और आगे बढ़ते
जाएं, अन्यथा हम जहॉं के तहॉं बैठकर रह जाएंगे. महानतम् तपस्वियों की जीवन-गाथाएं
बताती हैं कि विघ्न-बाधाएं उन्हें अन्त तक सताती रहती हैं. उनसे पराजय का अनुभव
करते ही उनको पतन का पथ देखना पड़ा है.
विघ्न–बाधाओं और संकटों
को झेलने के सम्बन्ध में प्राय: तीन प्रकार की मानसिकता देखने में आती है –
उदासीनता - उदासीनता की पद्धति सर्वाधिक प्रचलित है. इस
मार्ग पर सर्वाधिक धोखा होता है, क्योंकि दुर्बलता आस्तीन के सॉंप की तरह
सुरक्षित बनी रहती है और अवसर मिलते ही हमें अपना शिकार बना लेती है.
दार्शनिकता - दार्शनिकता की पद्धति पाखण्ड पूर्ण
मानसिकता की द्योतिका होती है. इसके धारणकर्ता दुनिया को धोखा देने का प्रयास करता
है अन्तत: स्वयं को भ्रमित करते हुए किसी गहरे गर्त में जा गिरता है.
धर्म-भावना – धर्म भावना सर्वाधिक प्रभावकारी होती है, क्योंकि
इसके दो अंग होते हैं – कर्तव्य-भावना तथा प्रभु के प्रति समर्पण की भावना. जो व्यक्ति
परिणाम की कम परवाह करता हैं और कर्तव्य भाव से अपने पथ पर अग्रसर होता है, उसको
सफलता अवश्य मिलती है, क्योंकि एक सत्याग्राही की भॉंति उसकी कभी हार नहीं होती
है. उसके जीवन का एक ही सूत्र रहता है – जो किसी ने किया है, वह मैं कर सकता हूँ.
विश्व में आशावादी जीव केवल एक ही है और वह है मनुष्य.
आपके सामने अनेक लक्ष्य
हैं. आप उनकी ओर ले जाने वाले मार्गों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कीजिए,
किसी मार्ग पर जाने का क्या मूल्य आपको चुकाना होगा – इसको जानिए और फिर अपनी
मानसिकता तथा अन्य प्रकार का सामर्थ्य का आकलन कीजिए. तदुपरान्त अपने गन्तव्य
का निर्धारण कीजिए. यदि आप चयनित मार्ग की यात्रा का अपेक्षित मूल्य चुकाएंगे, वह
मार्ग आपको गन्तव्य तक अवश्य पहुँचा देगा, क्योंकि मार्ग बना ही इसलिए है कि
वह पथिक को उसके गन्तव्य तक ले जाए.
जीवन-पथ पर अग्रसर होने
के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण जो सम्बल अपेक्षित होता है – वह हैं, आशावादिता. जब
आपने इच्छित का अपेक्षित मूल्य चुकाने का संकल्प कर लिया है, तब आपकी इच्छा
पूर्ण क्यों नहीं होगी? आपको इच्छित वस्तु की, इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति क्यों
नहीं होगी? याद रखिए आशावादिता मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी होती है. इसके द्वारा हम
जीवन को प्रत्येक उपलब्धि के अधिकारी बन सकते हैं. शर्त एक है – हम यथार्थ की
भूमि को न छोड़े और अपनी संकल्प-शक्ति पर ध्यान रखें.