Thursday, 5 July 2018

खुशियों के मेरे फंडे...

गुजरे जमाने की कौन जाने...
मैं तो आज की बात करता हूँ...
किस्से कई है जिंदगी के...
उनके राज की बात करता हूँ...
यूँ तो अनेकों है भगवान इस दुनिया में...
लेकिन मैं तो माँ-बाप की बात करता हूँ।

Friday, 29 June 2018

लक्ष्य के अनुसार मेहनत आवश्यक है...


आप जिस लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने की इच्‍छा रखते है, उसके अनुसार मेहनत करने के लिए अपने आपको तैयार करना आवश्‍यक होगा. जिन लोगों ने बड़े लक्ष्‍य हासिल किये है, वे यों ही किस्‍मत के भरोसे ऐसा नहीं कर सके हैं. उन्‍होंने अपने श्रम, कर्तव्‍यपालन एवं एकाग्रता आदि के द्वारा उसकी पूरी कीमत चुकायी है. जीवन पथ पर अग्रसर होने के लिए कठिन परिश्रम के रूप में कीमत चुकाना आवश्‍यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है.

आपने देखा होगा कि बाजार में एक ही वस्‍तु अलग-अलग दामों में उपलब्‍ध होती है, क्‍योंकि कीमत का सामान्‍य सिद्धांत है – जैसा माल वैसा दाम. लोक में प्रचलित कहावत भी यही कहती है कि जितना गुड़ डालोगे, उतना मीठा होगा. गुड़ की जगह हम भले ही शक्‍कर रख दें, परन्‍तु गुणवत्‍ता के ग्राहक को उक्‍त नियम का पालन करना ही पड़ता है.
यही नियम लक्ष्‍य प्राप्ति अथवा सफलता की कोटि के संदर्भ में लागू होता है. आप जितने बड़े लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने की इच्‍छा रखते है, आपको उसी के अनुरूप साधना व परिश्रम करने के लिए अपनी मानसिकता को बनाना होगा.
आप जिस लक्ष्‍य को प्राप्त करना चाहते है, आपको उनसे सम्‍बन्धित व्‍यक्तियों की जीवन-पद्धति का अध्‍ययन करना होगा, जिन्‍होंने सम्‍बन्धित उपलब्धि तक पहुँचने में सफलता प्राप्ति कर ली है. एक छोटी-सी पहाड़ी की चोटी पर आप एक छोटी-सी लाठी के सहारे पहुँच सकते है, परन्‍तु एवरेस्‍ट नामक पर्वत शिखर तक पहुँचने के लिए हमको हिलेरी, हण्‍ट और शेरप्‍पा तेनसिंह की भॉंति तैयारी भी करनी होगी और संघर्ष भी करना होगा- बर्फ काटने की कुल्‍हाड़ी और फावड़े से लेकर भोजन, पानी, ऑक्‍सीजन का सिलेंडर, डेरा-तम्‍बू  तक सभी कुछ ले जाना होगा. इसके अतिरिक्‍त ऑंधी-तूफान, वर्षा-बर्फ आदि का सामना करने की शक्ति का निर्धारण भी करना होगा. हमको उन लोगों की भॉंति साहस भी बटोरना होगा, जो अपने लक्ष्‍य की ओर बढ़ते समय बार-बार उठे हैं. याद रखिए हमारी उपलब्धि का मापदण्‍ड यह होता है कि हम कितनी विघ्‍न–बाधाओं पर विजय प्राप्ति  करके यहॉं तक पहुँचे हैं, जो लोग विघ्‍न-बाधाओं की परवाह करते हैं अथवा उनकी उपस्थिति से आंशकित अथवा आतंकित होते हैं. उनके लिए उचित है कि वे छोटी-सी पहाड़ी की चोटी को अपना लक्ष्‍य बनाएं और सुख-संतोष का अनुभव करने की मानसिकता बना लें.  एक प्रसिद्ध लेखक ने एक स्‍थान पर बहुत पते की बात कही है कि जिस मनुष्‍य को अपने चारों ओर विघ्‍न–बाधाएं ही दिखाईं पड़ती है, उसका आत्‍मबल क्षीण हो जाता है, वह कोई महान, कार्य नहीं कर सकता है, जो महान् लक्ष्‍य की प्राप्ति करके जीवन में कुछ बनना चाहते है, वे वस्‍तुत: नेपोलियन महान् की भॉंति आग-पानी की परवाह नहीं करते है. एक बार नेपोलियन की सेना आल्‍पस पर्वत को सामने देखकर ठिठक गई थी. नेपोलियन ने आवाज लगाई –  यह आल्‍पस पर्वत नहीं वह तो अभी दूर है फिर क्‍या सेना ने उस पर्वत को कोई दूसरा छोटा पर्वत समझ पार कर लिया, जबकि वह आल्‍पस पर्वत ही था. इसी तरह एक और किस्‍सा है जो कि अमेरिका के एक स्‍थान का है जहॉं एक छोटे गरीब परिवार में बालक रहता था। मेहनत-मजदूरी करके उसे जो भी मिलता, वह उससे अपना खर्च चलाया करता था। उसको एक दिन पता चला कि उसके घर से थोड़ी दूरी पर एक व्‍यक्ति रहता है, जिसके पास जॉर्ज वाशिंगटन की जीवन चरित्र है। उसने उस व्‍यक्ति से पढ़ने के लिए वह पुस्‍तक मॉंग ली, पर जब लौटाने का दिन आया तो उस दिन भंयकर बारिश होने लगी। उस बरसात में वह पुस्‍तक भीग गई। वह बालक उस व्‍यक्ति से बोला – “मैं आपको यह पुस्‍तक खरीदकर नहीं दे सकता, पर इसक बदले का परिश्रम करके मैं इसका मुल्‍य अवश्‍य चुका दूँगा।” वह व्‍यक्ति उसकी श्रमशीलता व ईमानदारी से अत्‍यंत प्रभावित हुआ। उसने वह पुस्‍तक उसे भेंटस्‍वरूप दे दी। यही श्रमशील व र्इमानदार बालक आगे चलकर संयुक्‍त राज्‍य अमेरिका के राष्‍ट्रपति अब्राहम लिंकन के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
तो देखा दोस्‍तों अपने लक्ष्‍य प्राप्‍त करने के लिए सभी को उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. विघ्‍न–बाधाएं वस्‍तुत: भूतों और डायनों की भॉंति होती हैं, जो हमारी शंकाओं की उपज होती हैं. मनसा डायन और शंका भूत, शंका और भय का शमन होते ही वे लुप्‍त हो जाती हैं. यही स्थिति विघ्‍न-बाधाओं, संकटों आदि की होती है. उनसे हम जितना अधिक डरते हैं, वे हमको उतना ही अधिक डरातें हैं. अन्‍यथा जीवन-निर्माण का अटल नियम तो यह है कि एक बाधा को पार करने का पुरस्‍कार होता है अन्‍य बाधा को पार करने की योग्‍यता की प्राप्ति.
यदि हमारे मन में कभी किसी प्रकार की आशंका अथवा भय की उत्‍पत्ति होती है, तो हमें न तो निराश होने की आवश्‍यकता है और न यह सोचने की जरूरत है कि हमारा मन दुर्बल है, हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे. दुर्बलताएं मानव जीवन का अनिवार्य अंग हैं, यदि हमारे जीवन में दुर्बलताएं न होंगी, तो हमें उन पर विजय प्राप्त करके सबल बनने की प्रेरणा क्‍योंकर प्राप्त होगीं? हॉं, हमें इतना अवश्‍य समझ लेना चाहिए कि शंका, आशंका, आदि का जन्‍म हमारे व्‍यक्तित्‍व के दुर्बल पक्ष की ओर इशारा करता है और यह भी निर्देश देता है कि हम उस पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करें.
हमारी प्रगति और दुर्बलताओं का चोली-दामन का साथ हैं. हम दुर्बलताओं को दूर करते जाएं और आगे बढ़ते जाएं, अन्‍यथा हम जहॉं के तहॉं बैठकर रह जाएंगे. महानतम् तपस्वियों की जीवन-गाथाएं बताती हैं कि विघ्‍न-बाधाएं उन्‍हें अन्‍त तक सताती रहती हैं. उनसे पराजय का अनुभव करते ही उनको पतन का पथ देखना पड़ा है.
विघ्‍न–बाधाओं और संकटों को झेलने के सम्‍बन्‍ध में प्राय: तीन प्रकार की मानसिकता देखने में आती है –
   उदासीनता - उदासीनता की पद्धति सर्वाधिक प्रचलित है. इस मार्ग पर सर्वाधिक धोखा होता है, क्‍योंकि दुर्बलता आस्‍तीन के सॉंप की तरह सुरक्षित बनी रहती है और अवसर मिलते ही हमें अपना शिकार बना लेती है.   
            
  दार्शनिकता - दार्शनिकता की पद्धति पाखण्‍ड पूर्ण मानसिकता की द्योतिका होती है. इसके धारणकर्ता दुनिया को धोखा देने का प्रयास करता है अन्‍तत: स्‍वयं को भ्रमित करते हुए किसी गहरे गर्त में जा गिरता है.
                
   धर्म-भावना – धर्म भावना सर्वाधिक प्रभावकारी होती है, क्‍योंकि इसके दो अंग होते हैं – कर्तव्‍य-भावना तथा प्रभु के प्रति समर्पण की भावना. जो व्‍यक्ति परिणाम की कम परवाह करता हैं और कर्तव्‍य भाव से अपने पथ पर अग्रसर होता है, उसको सफलता अवश्‍य मिलती है, क्‍योंकि एक सत्‍याग्राही की भॉंति उसकी कभी हार नहीं होती है. उसके जीवन का एक ही सूत्र रहता है – जो किसी ने किया है, वह मैं कर सकता हूँ. विश्‍व में आशावादी जीव केवल एक ही है और वह है मनुष्‍य.

आपके सामने अनेक लक्ष्‍य हैं. आप उनकी ओर ले जाने वाले मार्गों के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कीजिए, किसी मार्ग पर जाने का क्‍या मूल्‍य आपको चुकाना होगा – इसको जानिए और फिर अपनी मानसिकता तथा अन्‍य प्रकार का सामर्थ्‍य का आकलन कीजिए. तदुपरान्‍त अपने गन्‍तव्‍य का निर्धारण कीजिए. यदि आप चयनित मार्ग की यात्रा का अपेक्षित मूल्‍य चुकाएंगे, वह मार्ग आपको गन्‍तव्‍य तक अवश्‍य पहुँचा देगा, क्‍योंकि मार्ग बना ही इसलिए है कि वह पथिक को  उसके गन्‍तव्‍य तक ले जाए.
जीवन-पथ पर अग्रसर होने के लिए सबसे अधिक महत्‍वपूर्ण जो सम्‍बल अपेक्षित होता है – वह हैं, आशावादिता. जब आपने इच्छित का अपेक्षित मूल्‍य चुकाने का संकल्‍प कर लिया है, तब आपकी इच्‍छा पूर्ण क्‍यों नहीं होगी? आपको इच्छित वस्‍तु की, इच्छित लक्ष्‍य की प्राप्ति क्‍यों नहीं होगी? याद रखिए आशावादिता मनुष्‍य की सबसे बड़ी पूँजी होती है. इसके द्वारा हम जीवन को प्रत्‍येक उपलब्धि के अधिकारी बन सकते हैं. शर्त एक है – हम यथार्थ की भूमि को न छोड़े और अपनी संकल्‍प-शक्ति पर ध्‍यान रखें.

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Monday, 25 June 2018

असफलता से सफलता की ओर, निराशा से आशा की आेर...



दोस्‍तों, सुख का सफलता से घना रिश्‍ता है और जो लोग सफलता से चूक जाते है वो दुख की ओर रुख कर लेते हैलेकिन मेरा मानना है कि असफलता और निराशा में सफलता व आशा को देखें और महसूस करें। दोस्‍तों मेरा तो यह संदेश है कि अवसाद (सफलता का न मिलना) की अंधेरी रात में आशा (सफलता का मिलना) का दिया जलाए रखना चाहिए, क्‍योंकि रात के अंधेरे के बाद सुबह का प्रकाश आना निश्चित है. असफलता के अंधकार में, जो व्‍यक्ति सफलता को महसूस कर पाता है, वहीं सफलता के रास्‍ते पर आगे बढ़ता है, और साथ ही उसके सारे दुख भी दूर हो जाते है। दोस्‍तों हमें बस इतना करना है कि खुद पर विश्‍वास बनाये रखना है। जब कोई घुड़सवार घोड़े से गिर जाता है, तब वह तुरन्‍त अपने कपड़ो को झटकार कर और अपने चोटिल शरीर को सहलाकर फिर से घोड़े पर बैठ जाता है, क्‍योंकि उसको विश्‍वास रहता है कि चार-पांच बार गिरने के बाद ठीक तरह से घुड़सवारी करना आ जाएगा, जो चढ़ेगा नहीं, वह गिरेगा क्‍यों ? जो गिरकर बैठ जाएगा, वह चढ़ना कैसे सीख पाएगा? दोष गिरने में नहीं, गिरकर न उठने में है.  गिरते हैं सहसवार ही मैदाने जंग में, वह क्‍या गिरे, जो घुटनों के बल चलें? घुड़सवार की मानसिकता से क्‍या हम कोई ज्ञान प्राप्‍त कर सकते है? यही कि गिरने का अर्थ बैठ जाना नहीं है, बल्कि अधिक उत्‍साह के साथ उठकर आगे बढ़ना है. तब जिसको हम असफलता कहते है, वह क्‍या है? हमारे विचार से केवल सफलता की प्रेरणा है. असफलता का अपना कोई स्‍वतन्‍त्र अस्तित्‍व नहीं है, सफलता के अभाव का नाम ही असफलता है. एक प्रसिद्ध विचारक निबन्‍धकार का यह कथन कितना सच प्रतीत होता है कि सफलता निराशा का सूत्र कभी नहीं है, अपितु वह तो नई प्रेरणा है. असफलता को सफलता की प्रेरणा और निराशा को आशा की जननी मानने वाले व्‍यक्ति ही सफल होते है. एवरेस्‍ट पर विजय का अभियान सन् 1925 के आसपास आरम्‍भ हुआ था और सन् 1952 में उसको सफलता प्राप्‍त हुई. जितनी बार अभियान असफल हुआ, उतनी ही बार सफलता की प्रेरणा मजबूत होती गई. अभियान पर जाने वाले शूरवीरों ने क्षणिक निराशा में आशा की झॉंकी देखी और नई उमंग लेकर सफलता की ओर बढ़ गए. दोस्‍तों अगर 1925 में मिली असफलता से अगर वो लोग घबरा जाते तो आज तक शायद ही कोई व्‍यक्ति एवरेस्‍ट तक पहुच पाता।

 “रात लम्‍बी है मगर तारों भरी है, हर दिशा का दीप पलकों ने जलाया ।
 सांस छोटी है, मगर आशा बड़ी है, जिन्‍दगी ने मौत पर पहरा बैठाया।“

 इसी प्रकार भारत के स्‍वतन्‍त्रता संग्राम को ही उदाहरणस्‍वरूप ले लीजिए. इसकी शुरूआत सन् 1857 में हुई थी और उसका अंत सन् 1947 में हुआ, जबकि भारत को स्‍वतन्‍त्रता की प्राप्ति हो गयी. इस 90 वर्ष के अन्‍तराल में शासक वर्ग का दमन चक्र अनेक बार चला, अनेक व्‍यक्ति लाठियों और गोलियों के शिकार हुए, अनेक बार आन्‍दोलन तात्‍कालिक रूप से असफल हुआ. अनेक बार भारतीय जनमानस पर निराशा के बाद गहराए, परन्‍तु असफलता में अन्‍तर्निहित सफलता बराबर तड़पती रही और अपने साधकों को बार-बार प्रेरणा प्रदान करती रही कि वे निराशा में छिपी हुई आशा को देखने का प्रयास करें, असफलता में सफलता और निराशा में आशा की अनुभूति करने के जीवन-दर्शन द्वारा प्रेरित होकर हमारे स्‍वतन्‍त्रता सेनानी हर बार उठ खड़े होकर शत्रु को ललकारते हुए देखे जाते थे – देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है तथा नहीं रखनी सरकार जालिम नहीं रखनी. सन् 1942 के अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन के मध्‍य जब दमन के नाम पर ब्रिटिश सरकार का बहशीपन चरम सीमा पर था, तब हमारे नेताओं ने आवाज लगाई थी – Greater the suppression, nearer the goal अर्थात दमनचक्र जितना ही प्रबल होगा, हमारा लक्ष्‍य उतना ही निकट हो जाएगा. यदि जीवन में आशा का अस्तित्‍व मिट जाएगा,  तो जीवन का अस्तित्‍व भी समाप्‍त हो जाएगा. आशा का दिया जलाए रखने वाले व्‍यक्ति ही अपनी नैया को बिना रूके पार ले जाते हैं. दोस्‍तों इन सभी स्थितियों पर नजर डाले और विश्‍लेषण करें तो हम पायेंगे कि हमारे दुख और परेशानियां और मार्ग की बाधायें इनकें आगे कुछ भी नहीं है हमें मिल रही बाधायें कुछ भी नहीं है वह सिर्फ छोटा सा पड़ाव बस है और कुछ भी नही। अब हमें इन बाधाओं से सीख लेकर इनसे आगे बढ़ना है और सफलता के माध्‍यम से दुख को दूर करना है और दुख से सुख की ओर व असफलता से सफलता की ओर बढ़ना है। 





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Friday, 22 June 2018

खुशियों का समन्‍दर...


खुशियाेें का समन्‍दर है उसमें से कुछ बूंदे ले सको तो लो ।
चाहे दुख कितना भी हो उसको भूल कर खुश हो सको तो हो ।।

अगर जिदंगी में मिलता हो दुख से सुकून तो ले सको लों ।
मगर ऐसा नहीं तो खुशियों में डूब सको तो डूब ।।

कौन चाहता है दुनिया में दुखी होना लेकिन,
खुश कौन है ये ढूढ़ सको तो ढूढ़ ।।

 

जिदंगी यूं मिलती नही हर बार ।
अगर खुश होकर इसको जी सको तो जी।

यह दुनिया बड़ी अजीब है किसी के सुख से जलती है
लेकिन दुख में साथ भी रहती है, अब इस दुनिया के लिए कुछ कर सको तो कर ।।

आसान नही है खुश रहना इस दुख भरे जमाने में,
लेकिन यह आपकी काबिलियत है कि इसमें भी खुश रह सकों तो रह ।।







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खुशियां स्‍वयं के अंदर


नमस्‍कार दोस्‍तों, जैसा कि मैंने पिछले ब्‍लॉग में आप लोगों को बताया था कि कैसे हम सकारात्‍मक सोच और छोटे-छोटे कामों के माध्‍यम से अपने जीवन को खुश व समृद्ध बना सकते है ठीक उसी प्रकार आज के ब्‍लॉग में कुछ ऐसी बातें बताना चाहता हूँ जिसमें हम खुश होने के कुछ और तरीकों के बारे में जानेंगे। दोंस्‍तों आपने देखा होगा कि कई लोग खुश होने के लिए यहॉं वहॉं भटकते है वह कई ऐसे कार्य करते है जिनसे उन्‍हें खुशी तो नही मिलती लेकिन वो खुशी के चक्‍कर में किसी मुसीबत में पड़ जाते है और जीवन भर ऐसे ही भटकते रहते है लेकिन उन्‍हें खुशी नसीब तक नही होती ऐसे लोगों के लिए मुझे एक कहानी याद आती है जो आप लोगों ने भी कई बार सुनी होगी। “कस्‍तूरी हिरण की नाभि के पास एक ग्लेण्‍ड(ग्रंथि) होती है जिससे बहुत ही तेज खुशबू  बाहर आती रहती है, लेकिन कस्‍तूरी हिरण इस बात से अनजान यहॉं-वहॉं भटकता उस खुशबू को ढूढ़ता रहता है, वह बहुत जगह जाता है, प्रत्‍येक पुष्‍प-पत्‍ते को सूघंता, लेकिन वह खुशबू प्राप्‍त नही होती जो उसकी स्‍वयं की नाभि से आती है, उस खुशबू की तलाश में वो स्‍वयं का सम्‍पूर्ण जीवन व्‍य‍तीत कर देता है, लेकिन उसे कुछ भी प्राप्‍त नहीं होता।“ तो देखा दोस्‍तों ठीक उस कस्‍तूरी हिरण की तरह हमारा भी सम्‍पूर्ण जीवन उस खुशी की तलाश में बीत रहा है जो कही और नही अपितु स्‍वयं के अंदर विद्यमान है और हम उसे अपने अंदर छोड़ दुनिया भर में ढूढ़ते फिर रहे है। दोस्‍तों अगर हम अपने अंदर की खुशी को नही समझ पा रहे है या समझना मुश्किल हो रहा है तो फिर दुनिया की कोई भी ताकत आपको खुशी प्रदान नही कर सकती। दोस्‍तों भौतिक वस्‍तुयें आपकों तत्‍कालिक खुशी तो प्रदान कर सकती है लेकिन यह खुशी सिर्फ और सिर्फ क्षणिक खुशी ही होती है। अगर आप चाहते है कि आप दीर्घकालीन के लिए खुश रहे तो सबसे पहले आपको स्‍वयं के अंदर से उस खुशी को ढूढ़ना होगा सोचियें अगर वह हिरण एक बार शांत मन से उस खुशबू को ढूढ़ती तो उसे कहॉ भटकना पड़ता, कही नहीं। वह उस खुशबू को अपने स्‍थान पर ही प्राप्‍त कर लेती और बिना किसी परेशानी के जीवन भर उसे प्राप्‍त करती रहती। दोस्‍तों हमें भी एक बार शांत मन से अपने अंदर की खुशी को ढूढ़ कर अपने जीवन को भी खुश और मंगलमय बनाना है क्‍योंकि जिस व्‍यक्ति के मन में शांति और खुशी नहीं है वह व्‍यक्ति जल्‍द ही किसी न किसी बीमारी की चपेट में आ जाता है और फिर उसका सारा जीवन बीमारियों के इर्द-गिर्द ही निकल जाता है वह इनसे बाहर निकलने का लाख प्रयास करता है लेकिन वह निकल नही पाता है इसलिए दोंस्‍तों हमें खुश रहना बहुत जरूरी है और ऐसा हम रोजमर्रा के कार्यों को पूर्ण करते हुये कर सकते है हम जो भी कार्य करें उसे पूरी तन्‍मयता और खुश होकर करें, हर कार्य को कुछ इस अंदाज में करें कि दिल कहे आज तो मजा ही आ गया, दोस्‍तों एक बार आपके जीवन की दिनचर्या इस प्रकार बन गयी तो फिर आपकों सुखी और समृद्ध होने से कोई भी नहीं रोक सकता और आप खुश होने के साथ साथ अपने लक्ष्‍यों को भी प्राप्‍त कर लेंगे। दोंस्‍तों आप आज कितने भी दुखी है लेकिन एक बात याद रखना कि घने से घने अंधेरे में में उजाले की एक किरण जरूर होती है और गंभीर से गंभीर दुख में भी सुख छिपा होता है, यह बात आपको जानना होगा कि कोई भी समय स्‍थाई नहीं होता अगर आप दुखी है तो उसका कुछ समय निर्धारित है और वह समय व्‍यतीत होने के बाद आपका दुख स्‍वत: ही समाप्‍त होने लगेगा। दोस्‍तों इससे संबधित ही मैं एक कहानी बताता हूँ:- एक आदमी बहुत दुखी था और वह भगवान से रोज प्रार्थना करता था कि हे भगवान, मैंने ऐसा क्‍या गुनाह किया है जो आपने मुझे इतना दुख दिया? सारी दुनिया सुखी है सिर्फ मुझ को छोडकर। और अगर कोई व्‍यक्ति दुखी होता भी है तो वह भी मुझसे कम ही दुखी होता है आखिर मेरा कसूर क्‍या है जो इतना दुखी हूँ? एक रात उसने सपना देखा। सपने में देखा कि आकाश से भगवान बोले कि उठ, आज तुम्‍हारी बदलाहट कर देते है। तुम कहते हो न कि सब तुमसे सुखी है और तुम सबसे ज्‍यादा दुखी हो? वह बोला, हॉं भगवान! यही तो बोल रहा हूँ। पूरी उम्र यही तो कह रह हूँ लेकिन अब मेरी सुनवाई हूई। भगवान ने कहा, चलो। एक बड़े भवन की तरफ पूरा नगर जा रहा है, सभी लोग अपने अपने दुखों की गठरी बना कर लिये जा रहे है, सभी को कहा गया है कि अपने-अपने दुख, और सुख को जल्‍दी लेकर पहुंच आज उनको बदलने का अवसर है। धर्मस्‍थल पहुंच कर सभी लोग इकठ्ठा थे और अपनी- अपनी गठरी साथ लिये थे। फिर यह आदेश हुआ कि अपनी अपनी गठरी निर्धारित स्‍थान पर रख दो। गठरी रख दी गयी। तत्‍पश्‍चात आज्ञा हूई कि अब जिसको भी जिसकी गठरी लेनी है वह ले, लें। सभी लोग तेजी से भागे यह आदमी भी भागा; लेकिन यह क्‍या सभी लोगों ने तो अपनी ही गठरी ले ली और इस आदमी ने भी। और बड़ी गड़गड़ाहट हुई बादलों में और भगवान उस आदमी से बोले क्‍यों अब क्‍या हुआ? तो उसने कहा कि जब गठरियों देखीं तो दूसरों की इतनी बड़ी मालूम हूई, और स्‍वयं की छोटी । फिर बोला कि कम से कम अपने दुख से वाकिफ तो है इस उम्र में दूसरों के दुख भला कौन लें।  इससे पहले दूसरों के दुख कभी देखे ही नही थे आज देखें तो पता लगा कि उनके दुख तो मुझसे भी ज्‍यादा है अब इस स्थिति को जानने के बाद वह व्‍यक्ति भगवान को धन्‍यवाद देता हुआ वहॉं से अपने दुख की गठरी को उठाकर घर ले आया और फिर उन्‍हीं दुखो के साथ शेष जीवन को सुखमय व्‍यतीत करने लगा। दोस्‍तों ठीक इसी प्रकार आपके दुख भी भगवान ने उतने ही दिये है जिसमें आप जीवन को न सिर्फ जी सकें बल्कि सुखपूर्वक जी सकें। और एक दिन आप देंखेंगे कि वह दुख कुछ भी नहीं है और आप अपने लक्ष्‍य को प्राप्‍त कर अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बना पायेंगे।




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Thursday, 21 June 2018


नमस्‍कार दोस्‍तों, आज हर इंसान खुश रहना चाहता है लेकिन क्‍या सच में सभी लोग खुश रहना चाहते है और अगर ऐसा है तो सबसे पहले व्‍‍यक्ति को अपने अंदर व्‍य‍ाप्त बुराइयों को दूर करना होगा और साथ ही व्‍यक्ति को अपनी खुशियॉं छोटी छोटी चीजो में ढूढ़ने की आदत होना चाहिए साथ ही अगर व्‍यक्ति के मन में नकारात्‍मक विचार आते है तो उन्‍हे सकारात्‍मक विचारों में बदलना होगा जैसे कि पुरानी बात है कि एक गिलास आधा पानी से भरा हुआ था तो दो अलग अलग व्‍यक्तियों से उसके बारे में पूछा गया तो एक व्‍यक्ति जो कि नकारात्‍मक विचार वाला व्‍यक्ति था उसने बताया कि गिलास आधा खाली है परन्‍तु जब दूसरे व्‍यक्ति से पूछा गया तो उस सकारात्‍मक सोच वाले व्‍यक्ति ने बताया कि गिलास आधा भरा हुआ है अत: एक ही वस्‍तु को देखने के दो अलग अलग व्‍यक्तियों के दो अलग अलग नजरिये है अत: हमें भी लाइफ में  सकारात्‍मकता को बढ़ाना होगा और साथ ही ऐसे छोटे छोटे काम करने होगे जो हमें खुशी देते हों, अब वो छोटे काम कोई भी हो सकता है जैसे गमले में पानी देना हो या फिर अपने सब्‍जी वाले या दूध वाले का हालचाल जानना हो या फिर अपने दोस्‍त की किसी समस्‍या को सुलझाना हो या फिर किसी अपरिचित की मदद करना हो कई ऐसे छोटे काम है जो हमें खुशी प्रदान करते है और हम फिर अपने कार्य को सही ढंग से कर पाते है। दोंस्‍तों कई लोग होते है जो छोटी छोटी बात को लेकर झगड़ते रहते है मैं उन लोंगों के लिए यही कहना चाहता हूँ कि आप के झगड़ने से सिर्फ आपका नुकसान नहीं होता बल्कि आपके अंदर की खुशी भी समाप्‍त होने लगती है अत: ऐसे झगड़ें का क्‍या फायदा जो सिर्फ और सिर्फ आपको ही नुकसान पहुचायें। अगर आप सच में खुशी चाहते है तो आपको आज और अभी से सबसे पहला काम जो करना होगा वो है सकारात्‍मक सोच दोस्‍तों सकारात्‍मक सोच उस जादू की तरह है जो किसी भी व्‍यक्ति की जिंदगी में सिर्फ और सिर्फ खुशियॉं ही प्रदान करती है वह आपको दुखी होने वाले सभी तत्‍वों से दूर रखती है जैसें मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ  कि किस प्रकार सकारात्‍मक सोच आपकी जिदंगी में जादू का काम करती है – एक दिन एक छोटा सा बालक जो कि प्राइमरी स्‍कूल का छात्र था, भागते – भागते अपने घर आया और एक कागज का पन्‍ना अपनी मॉं को दिया और बोला...”मेरे अध्‍यापक ने यह कागज दिया है और कहा है कि इसे अपनी मॉं को ही देना।“ उस कागज को पढ़ते ही मॉं कि ऑंखों से ऑंसू बहने लगे और वो जोर-जोर से रोने लगी। मॉं को इस तरह रोता देख उस बालक ने पूछा कि ...”इसमें ऐसा क्‍या लिखा है, जो तुम ऐसे रो रही हो?” मॉं ने सुबकते हुए अपने ऑंसू पोछे और बोली :- इसमें लिखा हैं ...”आपका बेटा जीनियस है, हमारा स्‍कूल बहुत छोटा स्‍तर का है और अध्‍यापक भी बहुत प्रशिक्षित नही है, इसलिए इसे आप स्‍वयं शिक्षा दे।“  कुछ वर्षों के बाद उस बालक कि मॉं का स्‍वर्गवास हो गया। वो बालक थॉमस एल्‍वा एडिसन के नाम से विश्‍व प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गये थे। इन्‍होंने कई महान आविष्‍कार किए। एक दिन वह अपनी पा‍रिवारिक वस्‍तुओं को देख रहे थे। अलमारी के एक कोने में उन्‍हें कागज का एक टुकड़ा मिला, उत्‍सुकतावश उसे खोलकर देखा और पढ़ने लगे। यह वही कागज था, उस कागज में लिखा था:- “आपका बच्‍चा बौद्धिक तौर पर कमजोर है, उसे इस स्‍कूल में अब और नही आना है।“ एडिसन अवाक रह गये और घण्‍टों तक रोते रहे, फिर अपनी डायरी में लिखा... “एक महान मॉं ने बौद्धिक तौर पर कमजोर बच्‍चे को सदी का महान वैज्ञानिक बना दिया।“ तो देखा दोस्‍तों किस प्रकार एक मॉं की सकारात्‍मक सोच ने उसके बच्‍चे को एक महान वैज्ञानिक बना दिया इसे जादू न कहा जाये तो और क्‍या कहेंगे कि जिस बच्‍चे को बौद्धिक तौर पर कमजोर बता दिया गया हो और स्‍कूल के लिए मनाही कर दी गयी हो वह इंसान आगे चल कर सदी का महान वैज्ञानिक बना हो। दोस्‍तों यह जादू जो एक मॉं ने किया था वह आप भी अपने साथ कर सकते है और इसके लिए आपको कुछ ज्‍यादा नही बल्कि सकारात्‍मक सोच को बढ़ावा देना है फिर देखे आपके जीवन में खुशियॉं की बौछार हो जायेगी और फिर आप इस जीवन का आनन्‍द ले पायेंगें। https://amzn.to/2ttJltj 
इसके अलावा दोस्‍तों खुशियॉं प्राप्‍त करने का दूसरा सबसे अच्‍छा तरीका है कि आप दिन में कम से कम एक काम ऐसा जरूर करें जिससे किसी को खुशी हो, कहा जाता है न कि खुशियॉं बाँटने से बढ़ती है अत: हमें भी यही नियम खुश कर सकता है अत: हमें दिन में किसी भी समय ऐसा काम जरूर करना है जिससे कि कोई परेशान व्‍यक्ति कि परेशानी दूर की जा सके और उसे खुश किया जा सकें। इस प्रकार दोस्‍तों हम अपने जीवन में खुशियों को बढ़ा सकते है और जीवन को सुखी और समृद्ध बना सकते है।



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खुशियों के मेरे फंडे...

गुजरे जमाने की कौन जाने... मैं तो आज की बात करता हूँ... किस्से कई है जिंदगी के... उनके राज की बात करता हूँ... यूँ तो अनेकों है भगवान इ...